प्रसन्न होने का कारण भीतर ही है

प्रसन्न होने का कारण भीतर ही है,
बस इसे स्पर्श करना है


जी में जलन हो, आंखे गम से नम हों तो अच्छी खासी बहार सामने से गुजर जाए तो भी पता नहीं लगता। इस समय कहीं हमारे साथ ऐसा ही तो नहीं हो रहा? रोज शुभ के बजाय अशुभ अधिक सुनने का मिल रहा है। कभी-कभी तो लगता है सोचा भी नहीं था जिंदगी इतने खराब दिन देखेगी। आइए, इसको थोड़ा पलटकर देखते हैं। इतनी सब गड़बड़ होने के बाद भी बहुत कुछ अच्छा है जो हमारी जिंदगी में , हमारे आसपास घट रहा होगा। तो अब संकल लीजिए कुछ अच्छा देखेंगे, अच्छा ढूंढेंगे, अच्छा अपनाएंगें जो कुछ बुरा होता रहेगा, उसे होता रहने देंगे, पर इस बुराई के कारण अच्छे को क्यों खोएं? हम जान ही नहीं पाते हैं कि हमारे भीतर ही बहुत कुछ छिपा है। जैसे अभी भी कई लोग नहीं जानते कि गाय के गले की झालर (गलकंबल) को सहलाने से हमारे भीतर अत्यधिक पाॅजिटिविटी और शांति उतर आती है। इस मामले में गाय अनूठा प्राणी है। ऐसे में हम मनुष्यों के भीतर भी बहुत कुछ अच्छा छिपा है, जिसे स्पर्श कर हम प्रसन्न हो सकते हैं। तो आपके भीतर जो खूबी, जो अच्छाई है, उसका भले ही प्रदर्शन न करें, लेकिन उसे दूसरे में प्रवाहित जरूर करिए। इस महामारी का बुरा वक्त अपनी अति पर आ गया है और अति का अगला कदम ही अच्छा समय है।

पं. विजयशंकर मेहता