पिछले वित्तीय वर्ष मार्च में जीएसटी संग्रह (रिफंड से पहले) 11.5 प्रतिशत बढ़कर ₹1.78 ट्रिलियन के दूसरे उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। अप्रैल 2023 में उच्चतम राशि ₹1.87 ट्रिलियन एकत्र की गई थी। पूरे 2023-24 के दौरान जीएसटी संग्रह ₹20.18 ट्रिलियन तक पहुंच गया, जो पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान ₹18.07 करोड़ से 11.7 प्रतिशत की वृद्धि है।

हालांकि ग्रोस राशि काफी महत्वपूर्ण लगती है, लेकिन 2023-24 के लिए मौजूदा कीमतों पर यह सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ 6.86 प्रतिशत था। जो कि पिछले वर्ष के 6.72 प्रतिशत से अधिक तो हैं, लेकिन यह बहुत ही मामूली सा ज्यादा है। छह साल पहले 2018-19 में जीएसटी-जीडीपी अनुपात 6.23 फीसदी था। इस प्रकार, पिछले कुछ वर्षों में अर्थव्यवस्था जिस तरह से बढ़ रही है, इसके अनुरूप जीएसटी में मामूली वृद्धि ही हुई है। क्योंकि सरकार के लिए, शुद्ध जीएसटी संग्रह (रिफंड के बाद) सकल जीएसटी प्राप्तियों से अधिक महत्वपूर्ण है। 

इसका मुख्य कारण डिजिटलीकरण और मजबूत होती अर्थव्यवस्था है।

इससे न केवल कारोबार कर दायरे में आया है, बल्कि जीएसटी के लिए डाटा भी उपलब्ध हुआ है। इस डाटा से जीएसटी को लागू करना और जीएसटी न देने वालों की पहचान करना भी आसान हो गया है।

कर नीतियों में बदलाव और आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी की वजह से जीएसटी में बढ़त दर्ज की जा रही है। हालांकि जीएसटी को लेकर किसी भी तरह की सही सही भविष्यवाणी करना कठिन है, आर्थिक सुधार और सरकारी कार्रवाई इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

स्मार्टफोन की पहुंच, फिनटेक में नवाचार और ई-कॉमर्स में वृद्धि, यूपीआई पर डिजिटल भुगतान की वजह से जीएसटी अदा हो रहा है। यहां तक कि अब तो स्थानीय किराना स्टोर भी डिजिटलाइजेशन मोड पर आ गया है। इस तरह से यहां से होने वाले भुगतान भी जीएसटी के साथ ही हो रहे हैं।