सुरेश बाहेती

प्लाइवुड जगत के सभी प्रदेशों के सुरभाओं को एक जगह एकत्रित देख कर आज यह मंच भी गौरान्वित महसूस कर रहा है।

QCO कार्यान्वयन का समय जैसे जैसे नजदीक आ रहा है, सभी की उत्तेजना बढ़ रही है।

जहां एक ओर विस्तार की मांग हो रही थी, वहीं अब PPMA की अगुवाई में HPMA, AIPMA, AIPLI और DNPMAI ने इसे बिना किसी देरी के, तत्काल, लागु करने की मांग कर दी है।

हमारे पिछले वेबीनार में BIS के प्रदीप शेखावत जी ने स्वीकार किया था कि उद्योग की मांग और उत्पादन की वर्तमान परिस्थितीयों के हिसाब से BIS Standard में कई सारे बदलाव किए गए हैं।

चूंकि अभी तक यह जानकारी पब्लिक डोमेन में नहीं आयी है इसलिए भी उद्योग जगत अशांत है और कई भ्रम बरकरार हैं।

अभी तक BIS का लायसेंस लेना ऐच्छिक था, इसलिए उद्योग में एक बहुत बड़ी संख्या के पास लायसेंस नहीं है।

इन्हें अपने साथ लाने के लिए BIS क्या तरीका अपनाएगा यह जानना भी दिलचस्प होगा।

उद्योग के मन में कइ्र्र सारी शंकाएं हैं।

डॉ एम पी सिंहः

क्यूसीओ के गुणवत्ता मानकों के अनुरूप उत्पाद तैयार करने के लिए हमारे उद्योगपति तैयार हो रहे हैं। 10 अगस्त को पहला नोटिफिकेशन आया था।

हालांकि पहले उद्योग की मांग थी कि इसमें कुछ बदलाव होने चाहिए। लेकिन अब वह समझ गए हैं कि क्यूसीओ उनके लिए एक मौका लेकर आ रहा है। अभी देश में जो परिस्थितियां बन रही है, इसमें यह समझ विकसित हुई कि क्यूसीओ लागू करने में अब ज्यादा देरी नहीं होनी चाहिए।

उद्योगपतियों की ओर से ऐसे कुछ तर्क दे दिए गए, जिससे कुछ असमंजस की स्थिति बन गई है। इस स्थिति को दूर करने के लिए हमें एकजुट होना होगा।

गुजरात व केरल से जो फीडबैक मिला है, इसमें पता चला कि 90 से 95 प्रतिशत इंडस्ट्री ने बीआईएस सर्टिफिकेट नहीं लिया हैं। उन्हें इसकी जरूरत भी महसूस नहीं हो रही है। क्योंकि उनके उत्पाद की मांग एक वर्ग विशेष में हैं।

अब बीआईएस मानक आने से उन्हें डर लग रहा है कि उनका उद्योग बंद हो जाएगा। इसलिए हमारा सुझाव है, हम आपस में मिल कर यह समझ बना ले कि क्यूसीओ से एमएसएमई को बाहर रखना या और समय देना है।

यदि कम गुणवत्ता मानक रखते हें तो विदेश से भी आयातक इस श्रेणी का माल डंप कर सकते हैं।

छह माह में जो हालात बदले हैं, इसलिए सभी उद्योगपतियों को मिल कर एक आपसी समझ विकसित करते हुए क्यूसीओ को लागू करने की दिशा में काम करते हुए एमएसएमई को इससे बाहर रखने के लिए तैयार होना होगा।

यूं भी कई ऐसे उद्योग के QCO है, जिसमें एमएसएमई को बाहर रखा हुआ है। क्योंकि यह इकाई कम गुणवत्ता मानक का माल ही तैयार कर पाती है। इसलिए इस विकल्प पर कि एमएसएमई को इससे बाहर रखा जाए, आपस में चर्चा कर किसी निश्चय पर पहुंचना होगा।

एमएसएमई को QCO के दायरे से बाहर रखना ही ठीक रहेगाः नरेश तिवारी

एमएसएमई को क्यूसीओ से बाहर निकालना ही सही रहेगा।

इसमें यदि उन्हें समय दिया गया तो भी शायद उनकी परिस्थितियों में ज्यादा बदलाव नहीं आने वाला।

लेकिन इससे आयात होने वाला माल तो भारत में डंप होता ही रहेगाः इन्द्रजीत सिहँ सोहल

यदि एमएसएमई को क्यूसीओ से अलग रख दिया तो विदेश से कम गुणवत्ता का माल भारत में डंप होता रहेगा।

यदि एमएसएमई को रियायत मिलती है, तो सरकार आयात होने वाले कम गुणवत्ता के माल पर शायद रोक नहीं लगा सकेगी।

पंजाब में मांग कम होने की वजह से 50 प्रतिशत इकाई बंद हो गई। जो चल रही है, उनका उत्पादन भी कम है।

ऐसा नहीं होगाः डाॅ एम पी सिंह

जहां तक मेरी समझ हैं, ऐसा नहीं होगा। फिर भी एक बार इस पर विचार किया जा सकता हैं।

यह संभव नहीं कि क्यूसीओ लागू हो जाए और थोड़े समय में सभी लाइसेंस ले लेंगे। इसलिए एमएसएमई के बारे में सोचना ही होगा।

निर्माता से पहले हम उपभोक्ता है, हमारी सोच में यह बदलाव लाना होगाः अशोक अग्रवाल

निर्माता से भी पहले तो हम उपभोक्ता है। और प्रत्येक उपभोकता को सही गुणवत्ता का माल मिलना चाहिए जिसकी कीमत हम अदा कर रहे हैं। इसलिए लकड़ी उद्योग में गुणवत्ता मानक तय होने चाहिए। जब तक मानक तय नहीं होंगे तब तक इंडस्ट्री में उच्च गुणवत्ता नहीं आएगी।

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इसलिए QCO को जल्द से जल्द लागू करना चाहिए। एक समय सीमा के भीतर बड़ी, मध्यम व छोटी इकाईयों को इसके तहत लेकर आए। इसके लिए समय दिया जाना चाहिए, लेकिन गुणवत्ता मानक लागू होने चाहिए।

QCO से किसानों को भी लाभ होगाः देवेंद्र चावला

जितना भी भारत में माल बनता है, उसका बड़ा हिस्सा यमुनानगर में बनता है। आयात होने वाले माल के प्रभाव से यहां की 150 इंडस्ट्री बंद है।

लकड़ी उद्योग मुश्किल में हैं। ऐसा न हो कि हमारे साथ साथ लकड़ी उगाने वाले किसानों का भी नुकसान हो जाए। मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया के तहत काम करते हुए हम बीआईएस मानकों के अनुरूप अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता का माल तैयार कर सकते हैं।

क्यों कोई तय मानकों से कम का उत्पाद ले, क्यों उपभोक्ताओं को कम गुणवत्ता का उत्पाद मिले। हम सक्षम है, अपने उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता का उत्पाद देने में। जब इंडस्ट्री शुरू हुई थी, तब हम इस मुकाम पर नहीं थे, लेकिन आज हमने वह मुकाम हासिल कर लिया है।

बीआईएस मानक तुरंत लागू होने चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो आयात का कम गुणवत्ता के माल से हमारे बाजार पट जाएंगे। इसका खामियाजा उद्योग, उद्योग से जुड़े लोग व किसानों को उठाना पड़ सकता है।

वियतनाम से प्लाईवुड आ रही है। नेपाल से 50 से 60 गाड़ी प्लाईवुड आ रही है। जिसका वजन 20-25 किलो ही है, जबकि हमारे उत्पाद का वजन 35-40 किलो होता है।

रिजेक्ट माल का क्या होगा? डाॅ प्रशांत एम ए

बीआईएस मानकों पर एक साल से बात हो रही है। नई नीति व नए सिस्टम को लागू करने में शुरुआत में कुछ दिक्कत आती है। फिर भी एक सवाल खड़ा है कि रिजेक्ट माल का क्या होगा?

बीआईएस निरीक्षण के लिए बाहर से एजेंसी की सेवा लेता है। उनके पास स्टाफ की कमी है। इससे उद्योगपतियों में थोड़ा सा संशय बना हुआ है। इस तरह के संशय यदि दूर हो जाए तो उद्योगपति बीआईएस मानकों को लेकर उत्सुक है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि आयात को रोका जाना चाहिए। खासतौर पर वियतनाम से आने वाले उत्पादों पर रोक लगनी चाहिए।

खिलौने के उद्योग में बीआईएस मानक लागू किए गए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शुरूआती 36 लाइसेंस ही दिए गए। इसमें चीन को लाइसेंस नहीं दिया गया। और अब यह उद्योग आयात की बजाय निर्यात करता है।

ऐसा हो सकता है कि प्लाईवुड में भी सरकार इस तरह की सोच के साथ काम कर रही है। हमें युटिलीटी ग्रेड को बहुत ही सावधानी से देखना होगा।

हमारे पास सब कुछ है, जो इंडस्ट्री को चाहिए। लकड़ी उगाने वाले किसान, या ऐसी जमीन जिस पर पेड़ उगाए जा सकते हैं।

इसलिए मुझे लगता कि हमारा उद्योग बीआईएस मानकों के लिए पूरी तरह से तैयार है।

एमएसएमई को समय दिया जाना चाहिएः सोनू अग्रवाल

एमएसएमई को समय दिया जाना चाहिए। MSMEs में माइक्रो, स्माल और मीडियम इकाईयां है। क्यूसीओ में बड़ी व मध्यम इकाइयों को एक श्रेणी में रखा है। सरकार शायद इसे एक मानती है, इसलिए समय नहीं दिया गया। बहुत छोटी इकाईयों को तीन से छह माह का समय दिया जा रहा है।

इसमें यह पता चलेगा कि कितने उद्योगपति लाइसेंस लेते हैं।

इस पर विचार करके निर्णय बाद में लिया जा सकता है कि माइक्रो स्माल को छूट दी जाए या नहीं।

अभी यदि सरकार को यह कहेंगे कि MSMEs को छूट दे दी जाए लेकिन आयात पर प्रतिबंध लग जाए, ऐसा करना शायद सरकार के बस में नहीं है। इसलिए क्यूसीओ जिस तरह से लागू हो रहा है, उसे लागू होने दिया जाना चाहिए।

यूटिलिटी ग्रेड को हड़बड़ी में लागू करना सही नहीं है। क्योंकि इससे डंपिंग होने का अंदेशा है। मेरा मानना है कि हमारे अधिकतर उद्योग खासतौर पर जो बड़े व मध्यम श्रेणी के उद्यमी है, वह BIS का लाइसेंस लेकर ही काम कर रहे हैं।

जिन्होंने अभी तक लाइसेंस नहीं लिया तो उन्हें लाइसेंस लेने की जरूरत या इच्छा ही नहीं थी। अब क्यूसीओ जरूरी हो गया वह लाइसेंस ले लेंगे। आठ सौ लोगों के पास लाइसेंस है, किसी के पास एक तो किसी के पास तीन या चार है।

मेरा मानना है कि बार बार समय दिया जाना उचित नहीं है, क्योंकि जो उद्यमी दस पंद्रह साल से काम कर रहे हैं, लाइसेंस नहीं ले रहे हैं, तो उन्हें जितना भी अतिरिक्त समय दिया जाए, वह लाइसेंस लेगे ही नहीं। क्यूसीओ की घोषणा के बाद भी लाइसेंस कम हो रहे हैं। इसकी दो वजह है, या तो उनमें जागरूकता नहीं है या जरूरत नहीं है।

स्टॉप मार्किंग बड़ी समस्या है। इसका समाधान होना चाहिए। स्टाप मार्किंग की वजह से फैक्ट्री बंद हो जाए, यह ठीक नहीं है। इसकी जगह उद्योगपतियों को कोई ऐसा मंच उपलब्ध कराया जाए, जहां वह अपील कर सके। उसका लाइसेंस रद्द किया जा सकता है। जिससे उन्हें दोबारा लाइसेंस बनवाना पड़े। लेकिन फैक्ट्री को बंद कराना इस समस्या का समाधान नहीं है।

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यूटिलिटी ग्रेड बनाना है या नहीं यह समझना चुनौती हैः डॉ. एमपी सिंह

यह बात सही है कि मीडियम इन्डस्ट्री को निश्चित ही समय नहीं चाहिए। माइक्रो व स्माल के लिए छूट मिलनी चाहिए।

यह बड़ी चुनौती है कि यूटिलिटी ग्रेड बनाना है, या नहीं बनाना है। बनाया तो डंपिंग का अंदेशा है। इस स्थिति से निपटने का क्या उपाय हो सकता है? इस बारे में विचार करना होगा।

पैकिंग ग्रेड प्लाई की क्या संभावनाएं है?

पैकिंग ग्रेड प्लाई आमतौर पर छोटी इकाई में बनती है। सामान्य श्रेणी का प्लाईवुड हम कई बार घरों में भी प्रयोग करते हैं। कई बार कई जगह एक बार प्रयोग के लिए ही प्लाई चाहिए होती है।

साउथ इंडिया की स्थिति कुछ अलग है। नार्थ इंडिया की स्थिति अलग है।

हमें तय करना होगा कि चाहिए क्या?

क्या रिजेक्ट ग्रेड को यूटिलिटी ग्रेड में लाया जाए?

बीआईएस की मीटिंग में भी यह तय हुआ था कि यूटिलिटी ग्रेड होना चाहिए।

फिर भी मंथन करना जरूरी है।

जो भी परिणाम सामने आएंगे, इससे देश, उद्योग और बाजार को लाभ होगा।

जिन्होंने लाइसेंस रिन्यू नहीं कराए, उन्हें मौका दिया जाना चाहिएः देवेन्द्र चावला

साढ़े आठ सौ यूनिट, जिन्होंने लाइसेंस रिन्यू नहीं कराए, अब बीआईएस कह रहे हैं कि उन्हें दोबारा से अप्लाई करना होगा। निवेदन यह है कि अब इनके लिए नीति यह बनाए कि उनके लिए नए सिरे से आवेदन न करना पडे, बल्कि लाइसेंस रिन्यू कर दिए जाए।

गुणवत्ता मानक पर माल खरा नहीं उतरता तो उत्पादन तुरंत बंद करवा देना उचित नहीं है क्योंकि तब पूरी इकाई प्रभावित होगी। इसलिए कुछ इस तरह का प्रावधान होना चाहिए कि पहली बार चेतावनी, दूसरी बार कड़ी चेतावनी व तीसरी बार स्टाप मार्किंग की जानी चाहिए।

बीआईएस अधिकारियों ने भरोसा दिया है कि किसी तरह की दिक्कत नहीं आने देंगेः इंद्रजीत सिंह सोहल

बीआईएस ने हमें आश्वासन दिया है कि उनकी ओर से किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी। बीस दिन के अंदर लाइसेंस दे देंगे।

आयात बंद होना चाहिए। या फिर आयात के माल की गुणवत्ता हमारे माल की गुणवत्ता के अनुरूप होनी चाहिए।

देश में लकड़ी के उत्पाद बनना फायदे की बात है। किसानों को इससे सहयोग मिलेगा। मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया को हम अमल में ला सकते हैं।

हमें खुद को सीमाओं में नहीं बांधना चाहिएः अभिषेक चितलांगिया

आयात होने वाला सारे माल की गुणवत्ता कम है, यह कहना सही नहीं है। यह आयात करने वाले पर निर्भर करता है।

भारत में भी सस्ता प्लाईवुड बनता है। इसलिए आयात की बुराई करने की बजाय हमें अपनी ओर देखना चाहिए। विदेश के माल की आलोचना सही नहीं है।

हम खुद को सीमाओं में बांध नहीं सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यदि खुद को साबित करना है तो हमें खुले मन से काम करना चाहिए। हमारे अपने देश में सभी इकाई संचालकों के पास बीआईएस लाइसेंस नहीं है, फिर हम आयात होने वाले माल की गुणवत्ता की बात कैसे कर सकते हैं?

एमएसएमई के चक्कर में क्यूसीओ लागू करने में देरी न हो जाएः अरविंदर सिंह

जीएसटी लागू हुआ तो, अब जाकर इसका फायदा नजर आ रहा है। इसलिए क्यूसीओ से भी निश्चित ही हमें फायदा होगा।

भारत का फर्नीचर उद्योग तभी अंतरराष्ट्रीय स्तर को छू पाएगा, जब उन्हें उच्च गुणवत्ता का प्लाइवुड मिलेगा।

हम बाहर के माल को आने से रोकने के लिए खुद को सीमाओं में बांधने नहीं जा रहे हैं। हम इस बात का विरोध कर रहे हैं कि कम गुणवत्ता का माल डंप नहीं होना चाहिए।

आईएसआई मार्क का फर्जी इस्तेमाल करने वालो पर रोक लगनी चाहिए। क्योंकि इससे हमारे अपने उद्योग का नाम खराब होता है।

बीआईएस कभी न कभी तो लागू होना है, तो फिर अभी क्यों नहीं लागू कर रहे हैं। एमएसएमई के चक्कर में कहीं क्यूसीओ को लागू करने में ही देरी न हो जाए। बीआईएस के अधिकारियों का कहना है कि बीस दिन के भीतर वह लाइसेंस दे देंगे।

एक बार मानक लागू हो जाए, इसके बाद देखा जाए कि किसे कितनी छूट दी जानी चाहिए।

अनिवार्य किए जाने पर ही BIS निर्माता को बाध्य कर सकेगाः सुरेश बाहेती

बीआईएस अधिकारियों का कहना है कि अभी लाइसेंस लेना उद्योगपतियों की इच्छा पर निर्भर करता है, वह लेना चाहे या नहीं। लेकिन यदि इसे अनिवार्य कर दिया गया तो BIS हर निर्माता को लाइसेंस लेने के लिए बाध्य कर सकेंगे।

गुणवत्ता मानक ऐसे हो, जिसे उद्योग आसानी से पूरा कर सकेः डाॅ. सीएन पांडे

क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर लागू होना चाहिए। अभी लाइसेंस के लिए किसी पर दबाव नहीं था। लेकिन अब लाइसेंस को अनिवार्य करने की बात चल रही है।

इंडस्ट्री की ओर से यह बताया गया कि कच्चे माल के तौर पर जो लकड़ी प्रयोग की जा रही है, वह कम अवधि की होने की वजह से इसका असर गुणवत्ता पर पड़ रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए डाॅ. सिंह ऐसा प्रस्ताव लेकर आए है कि ऐसा उत्पाद मानक तय करें कि उद्योग पर दबाव भी न पड़े, न ही मानक की गुणवत्ता खराब हो।

कोई भी इकाई शत प्रतिशत सही गुणवत्ता का उत्पाद तैयार नहीं कर पाती। ऐसा नहीं है कि हमारे उद्योग इस स्तर के नहीं है, लेकिन उत्पादन के वक्त कुछ त्रुटि रह सकती है।

अब यदि एक मानक पूरा नहीं हुआ तो सारे उत्पाद की गुणवत्ता कम आंक देना सही नहीं होगा। ऐसे माल को रिजेक्ट ग्रेड में रखा जाए ऐसी सलाह आयी थी, लेकिन इसे सही नहीं माना गया।

अब युटीलिटी ग्रेड का प्रस्ताव दिया गया है। क्योंकि इस तरह के उत्पाद का इस्तेमाल ऐसे काम में लाया जा सकता है, जहां कम गुणवत्ता का प्लाईवुड प्रयोग में लाया जाता है।

क्वालिटी कंट्रोल आर्डर को एक मौके के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए। जो अन्य मुद्दे शेष रह जाते हैं, उन पर विचार करते रहेंगे।

सरकार असमंजस में थी कि बीआईएस लाइसेंस आने के बाद हमारे निर्माता गुणवत्ता मानक का उत्पाद बना पाते है या नहीं।

हमारी छोटी इकाईयां जो अभी तक मुख्य धारा में नहीं आएं हैं, वह लाइसेंस लेकर अच्छी गुणवत्तापूर्ण उत्पादन करें, इससे बेहतर और क्या हो सकता है।

जब भी हम प्रतिद्वंद्विता में आते हैं तो निश्चित ही हमारी गुणवत्ता में सुधार आता है।

हम क्यों नहीं गुणवत्ता का उत्पाद तैयार कर सकते हैं। यह कोई बहुत पेचीदा तकनीक नहीं है। यह संभव है।

कम उम्र की लकड़ी से उत्पादन तैयार करने से दिक्कत आती है। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

वैज्ञानिक, सरकार और संस्थान हर कोई आपके साथ काम करने को तैयार है। अब यह उद्योग पर निर्भर करता है कि वह उद्योग को किस दिशा में ले जाना चाहता है।

रिजेक्शन को लेकर अब क्या किया जाना चाहिए, यह नीति का विषय हैः जे के बियानी

सभी चाहते हैं कि क्यूसीओ को लागू करना चाहिए।

रिजेक्शन को लेकर अब क्या किया जाना चाहिए, इस पर नीति बननी चाहिए है। ऐसे माल पर यदि रिजेक्शन का मार्क लगा दिया गया तो वह माल बिकेगा नहीं।

यदि दो बार सैंपल फेल हो गया तो मार्किंग बंद कर दी जाती है। अब क्योंकि यह बदलाव का दौर है, इसलिए दो मौको की बजाय तीन मौके दिए जाने चाहिए।

तीन मौको के बाद जब उत्पादन बंद करने का नोटिस मिले तो दोबारा से सब कुछ सेट कर फैक्टरी के अंदर ही गुणवत्ता की जांच हो। यह एक सप्ताह के भीतर हो जाना चाहिए। जिससे फैक्टरी के बंद करने की नौबत न आए।

बीआईएस के नये संशोधित स्टैर्डड भी अब सार्वजनिक हो जाने चाहिए। हमने अपने सुझाव दे दिए हैं।

कम उम्र की लकड़ी खासतौर पर पॉपुलर का इस्तेमाल डवत् की वर्तमान इच्छित मजबूती नहीं दे सकता। वास्तविक परिक्षण तथ्यों को ध्यान में रख कर ही मानक तय होने चाहिए। तभी क्यूूसीओ सुचारू तौर से लागू हो पाएगा, और इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। इसे इतना मुश्किल न कर दिया जाए कि मानक पूरा करना मुश्किल हो जाए।

उद्योग को एक दो साल लग सकता है, नए वातावरण में ढलने में।

जो नए माइक्रो व स्माल यूनिट बीआईएस में शामिल होते हैं, उन्हें भी कुछ रियायत मिलनी चाहिए।

ऐसा लगता नहीं कि आयात होने वाले माल की गुणवत्ता यदि सही हे तो उसे आने से रोका जा सकता है।

संक्षेप मेंः

  1. क्यूसीओ जैसे नोटिफाई हुआ, वैसे लागू रहे
  2. स्टाप मार्किंग में रियायत दी जाए
  3. यूटिलिटी ग्रेड का कोई हल निकाला जाए
  4. स्टाॅप मार्किंग में दो मौकों की बजाय तीन मौके दिए जाए

स्टाॅप मार्किंग चिंता का विषयः मनोज ग्वारी

बीआईएस के प्रावधान में आयात होने वाले लकड़ी उत्पाद के लिए अलग श्रेणी बनाई गई है।

इसलिए MSMEs को यदि रियायत दी जाती है तो आयात होने वाले उत्पादों पर यह रियायत लागू नहीं होगी।

जीएसटी की तरह बीआईएस भी एक देश एक कानून होना चाहिए।

अगस्त में जो नोटिफिकेशन आया वह फरवरी में लागू हेाना है माइक्रो के लिए अप्रैल में होना है।

माइक्रो में 80 प्रतिशत की फीस में छूट है, फिर भी तीस से चालीस प्रतिशत आवेदन ही आ रहे हैं।

स्टाॅप मार्किंग के लिए चिंता जायज है। इसके लिए जिस वजह से सैंपल फेल आया, सिर्फ उसकी ही जांच करा ली जाए तो इससे समय बच सकता है।

यदि बहुत छोटी इकाईयों को छूट मिलती है तो वह भी भविष्य के लिए ठीक नहीं है। क्योंकि तब वहां से गैर ब्रांडेड उत्पाद बाजार में आएंगे।

उत्पादक भी आयात कर रहे हैं।

आयात तुरंत रूकना चाहिएः इन्द्रजीत सिहँ सोहल

प्लाईवुड उद्योग रोजगार का बहुत बड़ा माध्यम है। इसमें 15 लाख किसान, 15 लाख श्रमिक समेत एक करोड़ लोगों को रोजगार मिल रहा है। इसलिए आयात तुरंत रूकना चाहिए।

हर इकाई को बीआईएस के तहत आना चाहिए। अन्यथा, वह फर्जी तरीके से BIS मार्किंग कर बाजार को धोखा देने का काम करता है।

सवालः जो तैयार माल बाजार और गोदाम में पड़ा है उसका क्या होगा

मनोज ग्वारीः बीआईएस जब भी कोई मानक तय करते हैं, तो जो उत्पाद बाजार में पड़ा है के बारे में जानकारी ली जाती है। लेकिन, उसके बारे में अभी कोई चर्चा नहीं है।

अलग से मानक तय करने में वक्त लगता हैः सीएन पांडे

युटीलिटी ग्रेड 303 में शामिल कर दें, क्योंकि अलग मानक तय करने में समय लग सकता है। अगर नए सिरे से बनाने की कोशिश करेंगें, तो इसकी प्रक्रिया पूरी करते हुए यह छह माह में तैयार नहीं हो सकता।

लकड़ी से मिलते जुलते उत्पादों से चुनौतीः मनोज ग्वारी

सीएन पांडे जी ने सही बताया है कि किसी नए मानक को बनाना असान नहीं है। इसमे कम से कम एक साल का समय लग सकता है।

एचडीएमआर और डब्ल्यूपीवीसी जैसे उत्पाद हमारे उत्पाद की जगह ले रहे हैं। डब्ल्यूपीवीसी जैसे उत्पाद में लकड़ी कितनी है यह पता नहीं है, इससे हमारे उद्योग को चुनौती मिल रही है।

कुछ ऐसे उत्पाद है जो विभिन्न लकड़ी उत्पादों के 40 प्रतिशत बाजार पर कब्जा किए हैं, लेकिन बीआईएस में वह शामिल नहीं है।

प्लाइवुड की जगह कोई नहीं ले सकताः अशोक ताजपुरिया

ऑटो मोड पर सब चीजे चल रही है। मानकों से उपभोक्ताओं को आसानी होगी। इसलिए क्यूसीओ लागू हो जाने चाहिए।

जहां तक कि दूसरे उत्पादों की बात है, सभी का अपना अपना मार्केट है। प्लाइवुड की अपनी एक जगह है। इसकी जगह कोई नहीं ले सकता। उद्योग को अपने उपर यकीन होना चाहिए।

यह बात सही है कि प्लाईवुड से मिलते जुलते जो उत्पाद है, उनके लिए भी गुणवत्ता के मानक तय होने चाहिए। तभी हम उपभोक्ताओं के हितों को पूरा कर सकते हैं।       

हमें मीडियम व स्माल उद्योग के प्रति कठोर रवैया नहीं रखना चाहिए। उन्हें साथ लेकर चले।

बीआईएस से उम्मीद है कि वह उद्योग को सहयोग करते हुए मानकों को लागू कराने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए।

सभी को साथ लेकर चलना चाहिएः एमपी सिंह

माइक्रो व स्माल उद्योग का भी ध्यान रखना है, यह सही और अच्छी बात की है। यह नयी व्यवस्था है, हमें इसे आपस में अंतर्विरोध में नहीं डालना चाहिए। जो भी निर्णय लिए जाएं, सभी की सहमति से होना चाहिए।

क्यूसीओ में जो देरी हो रही है, इसकी वजह यह हैं कि हम ने आम राय बनाने में देर की। क्यूसीओ तत्काल आना चाहिए, यह सभी चाहते हैं। लेकिन ध्यान भी रखना होगा कि अनावश्यक ऐसी कुछ स्थिति भी न बन जाए, जिसका समाधान बीआईएस के पास भी न हो।

पैकिंग के तौर पर प्रयोग होने वाले प्लाईवुड में सामान्य प्रयोग ग्रेड का लेबल नहीं लगाया जा सकता है।

यह बात सरकार तक पहुंचनी चाहिए कि जो लकड़ी से मिलते जुलते उत्पाद है, उन सभी पर गुणवत्ता मानक लागु नहीं हुए हैं।

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जब आपके उत्पाद की लागत QCO की वजह से बढ़ेगी तो इस तरह के दूसरे उत्पादक यह जगह ले सकते हैं।

इस बारे में सरकार को ज्ञापन देना चाहिए।

बीआईएस को भी इस पर ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि एक उत्पाद को तो आप गुणवत्ता मानकों में ले आए, लेकिन उसके समान दूसरे उत्पाद को खुली छूट दे दी जाए तो यह तर्कसंगत नहीं है।

यह तो एक उत्पाद को रोक कर दूसरे को बढ़ावा देने जैसी बात है। ऐसे कई उत्पाद है, जिसमें दस प्रतिशत भी लकड़ी नहीं है।

यह उत्पाद यदि बिके तो लकड़ी के नाम पर क्यों बेचे जाए? इसे लकड़ी से अलग रखा जाना चाहिए। इस बारे में बात उठनी चाहिए।

जो उत्पाद रिजेक्ट होता है, उसे किस तरह प्रयोग या उपयोग में लाया जा सकता है। इस पर भी विचार करना होगा।

QCO को लागु करना भी चुनौती

हम लोग अभी बीआईएस के तहत क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर के लिए अपने आप को भी तैयार नहीं कर पाये।

इसलिए मानक तय करना काफी नहीं है, मानक को लागू कैसे किया जाए, इस बारे में भी ध्यान देना होगा? क्योंकि 90 प्रतिशत उद्योग BIS के दायरे से बाहर हैं।

अब जो उत्पाद रिजेक्ट हो गया तो उसका होगा क्या?

एमडीएफ के बड़े उत्पादक भी काफी परेशान है, क्योंकि 5-10 प्रतिशत भी रिजेक्ट होगा तो इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है। इस तथ्य को बीआईएस भी सुलझा नहीं पा रहा है। रिजेक्ट ग्रेड बना दिया जाए तो बेहतर होगा।

क्योाकि यदि ग्रेड ही नहीं होगा तो रिजेक्ट माल का क्या करेंगे? फिर तो उसे नष्ट करना होगा। यह बहुत बड़ा नुकसान है।

सवालः क्या मानकों में कोई बदलाव हुए है?

श्री एम पी सिंहः विशेष प्रयोग के लिए बनाए जाने वाले प्लाईवुड में कुछ बदलाव किए गए हैं। बीआईएस ने इसमें उद्योग से जो सुझाव आए थे उन्हें शामिल कर लिया है।

जिन मानकों पर सहमति बन गई, उन्हें प्रकाशित और अमल में लाया जाना चाहिएः अभिषेक चितलांगिया

जिस किस्म की लकड़ी कच्चे माल के तौर पर हम प्रयोग कर रहे हैं, इससे 303 और 710 के तय मानकों तक पहुंचना पेचीदा काम है। स्टाॅप मार्किंग भी एक बड़ा मुद्दा है।

हम उस स्तर पर पहुंच गए है, जहां मानकों के अनुरूप उत्पाद तैयार कर सके।

लेकिन जब हम युटिलीटी की बात करते हैं तो इससे बीआईएस के 303 के मानक तय करने में देरी कर रहे हैं।

हम कई चीजों में आगे बढ़ रहे हैं, कुछ में पीछे हट रहे हैं। मेरा मानना है जो तय हो गयी, उसे लागू कर दिया जाना चाहिए।

जहां तक आयात होने वाले माल की गुणवत्ता का सवाल है, तो इसका निर्णय हमें उपभोक्ताओं पर छोड़ देना चाहिए। यदि किसी उपभोक्ता को उसके दिये मुल्य के बराबर का माल नहीं मिलता है तो वह वापस उस उत्पाद पर नहीं जाएगा। हमारे यहां भी ऐसी कई फैक्टरी है, जो कम गुणवत्ता का उत्पाद तैयार कर रही है। हम उनसे मुकाबला क्यों करें।

हमें गुणवत्ता पर बात करनी चाहिए। हम गुणवत्ता का उत्पाद देने मे सक्षम है। बस हमें अपने बाजार व अपने उपभोक्ताओं का ध्यान रखना चाहिए। हम ऐसा नहीं कर सकते हैं कि किसी का उत्पाद रूकवा कर अपना माल बेच सके।

हम उन सभी उद्योगों की मदद करने के लिए तैयार है, जो लाइसेंस लेना चाहते हैं। उन्हें तकनीकी मदद की जरूरत है, मैं उन्हें यह मदद दूंगा।

छह माह हो गए, अभी तक लाइसेंस के तहत सभी इकाई नहीं आयी। क्यों? इस पर बात होनी चाहिए।

सुरेश बाहेती

तब तक कोई कानून अमल में नहीं लाया जा सकता जब तक कि उसे न मानने पर जुर्माने का प्रावधान न हो। क्योंकि हम दबाव में ही नियमों व कायदों को मानते हैं।

लाइसेंस तुरंत लागू होना चाहिएः अशोक कुमार अग्रवाल

प्लाईवुड यदि खराब निकलता है तो यह बात पता चलने में किसी उपभोक्ता को काफी समय लग जाता है। यूं भी कारपेंटर के भरोसे ही ज्यादा लोग रहते हैं।

इसलिए QCO को लागू कर दिया जाना चाहिए। जुर्माने व सजा का प्रावधान होना चाहिए।

जो उत्पाद तय मानकों के अनुरूप नहीं है,उसका क्या करना हैः सुभाष जोली

बीआईएस को इस समस्या का हल निकालना जरूरी है कि जो उत्पाद तय मानकों के अनुरूप नहीं है, उसका क्या करना है? क्योंकि इसके लिए उन्हें ही पहल करनी है। उद्योगपतियों को अपना सुझाव भी इस बाबत बीआईएस को देना चाहिए।

उद्योग के विकास के लिए बीआईएस जरूरी है, लेकिन उद्योगपतियों की दिक्कत और जरूरत को भी ध्यान में रखना होगा। इसमें संतुलन बनाते हुए ही हम गुणवत्ता मानकों को लागू कर सकते हैं।

डाॅ एम पी सिहं को उद्योपतियों के विचार मंथन को सही दिशा और उचित सलाह देने के लिए धन्यवाद।

सभी प्रतिभागीयों द्वारा इस मंच पर खुलकर विचार विमर्श करने के लिए साधु वाद।


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