Rajneesh Tyagi

किटाणु रोघी उपचार और सीजनिंग को प्रोत्साहित करने से लकड़ी की उपयोगिता भी बढ़ेगी और हरियाली भी


हमने एक पेड़ लगाया और एक बचाया, या यूं कहें कि जो काटकर उपयोग किया, उसकी उम्र बढ़ा दी। इससे हमें दोगुना फायदा होगा।



लकड़ी को सीजनिंग करने से फायदा?

लकड़ी को सीजनिंग करना हर तरह से जरूरी है। इससे लकड़ी का जीवन और उसकी उपयोगिता कई गुना बढ़ जाती है। जिससे ज्यादा से ज्यादा लकड़ी प्रयोग में लायी जाएगी और पौधा रोपण के प्रति लोगों में उत्साह बढ़ेगा। सरकार द्वारा चलाए जा रहे पर्यावरण रक्षा अभियान को इससे स्वतः स्फूर्त्ति मिलेगी। पेड़ लगाने का अभियान तो चलाया जा रहा है। लेकिन इसके साथ ही लकड़ी का बेहतर और बुद्धिमता पूर्ण इस्तेमाल भी हो। तभी संतुलन बना रहेगा। हमने एक पेड़ लगाया और एक बचाया, या यूं कहें कि जो काटकर उपयोग किया, उसकी उम्र बढ़ा दी। इससे हमें दोगुना फायदा होगा।

इसके लिए लकड़ी को कीटाणु मुक्त ट्रीटमेंट करने के साथ ही सीजनिंग करने को कानूनी बना दिया जाना चाहिए। जहाँ भी लकड़ी का प्रयोग हो, वहां सीजनिंग और ट्रीटमेंट करने के बाद ही लकड़ी लगें। इस तरह की लकड़ी पर फफूंदी नहीं लगती। लकड़ी के अंदर जो भी कोई प्राक्रतिक कीट है, तो वह भी मर जाएगा। सीजनिंग में तापमान 60 डिग्री से ऊपर तक जाता है। 50 डिग्री तक जैसे ही तापमान जाता है, तो कीट मर जाते है। लकड़ी की नमी खत्म हो जाएगी। इससे लकड़ी के सिकुड़ने और मूड़ने की संभावना लगभग खत्म हो जाएगी।

प्रकाष्ठ (लकड़ी) संशोषण (सीजनिंग) की परिभाषाः

कृत्रिम रूप से बनाई और नियंत्रित की गई वायुमंडलीय परिस्थितियों में लकड़ी को सुखाने को लकड़ी की सीजनिंग कहा जाता है। वुड सीजनिंग लकड़ी के मुड़ने, टूटने और सिकुड़ने को बहुत हद तक कम करता है, जिससे की लकड़ी उच्च गुणवत्ता वाले फर्नीचर के निर्माण के लिए उपयुक्त हो जाती है।

फर्नीचर निर्यात में लकड़ी की सीजनिंग का महत्वः

1. स्थिरता और संरचनात्मक अखंडताः उचित सीजनिंग उतार-चढ़ाव वाली पर्यावरणीय स्थितियों के दौरान लकड़ी में नमी को कम करता है, जिससे की लकड़ी में विकृति, विभाजन या संरचनात्मक क्षति के अन्य रूपों की संभावना कम हो जाती है ।

2. आयामी समरूपताः सीजनिंग की गई लकड़ी सभी आयामों में समरूप होती है जिससे की ऐसी लकड़ी से बनाए गए फर्नीचर इत्यादि उत्पाद अपने माप एवम् आकार में भी स्थिर रहते है।

विदेशों में खासतौर पर कनाडा के वन विभाग का नियम यह है कि एक पेड़ यदि कोई काटता है तो वहां छह पौधे लगाने होते हैं। साथ ही उसकी यह भी जिम्मेदारी होती है कि वह छह पौधे जीवित रहें।

बेहतर कार्यशीलताः नियंत्रित सुखाने से लकड़ी की नमी की मात्रा कम हो जाती है, जिससे विनिर्माण प्रक्रिया के दौरान काम करना आसान हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सटीक कट, जॉइनरी और परिष्करण का काम करना आसान हो जाता है।

1. कीट संक्रमण को रोकता हैः सीजनिंग कीड़े और उनके अंडे को खत्म करता है जो लकड़ी को संक्रमित कर सकते हैं, परिवहन और भंडारण के दौरान फर्नीचर की रक्षा करते हुए।

लकड़ी सीजनिंग के प्रकारः

1. प्राकृतिक संशोषण (सीजनिंग)ः पुराने जमाने से चली आ रही इस पद्धति में लकड़ी को क्रमबद्ध तरीके से टाल या चट्टा लगाकर प्राकृतिक रूप से वाश्पीकरण के माध्यम से नमी को कम किया जाता है। एयर सीज़निंग में लागत कम है लेकिन अपेक्षाकृत समय लेने वाली है।

2. कृत्रिम संशोषण (सीजनिंग) : इसमें लकड़ी को भट्टी (ऊश्मा रोधी चैम्बर), सुपरहीटेड स्टीम, केमिकल, वेक्यूम, माइक्रो-तरंग, आदि का प्रयोग करके सीजन किया जाता है।

2.1 किल्न (भट्टी) सीजनिंगः किल्न में सुखाने से विशेष रूप से तैयार किए गए कक्षों में लकड़ी रखकर नमी निष्कर्षण प्रक्रिया में तेजी आती है। इस विधि से तापमान, आर्द्रता और सुखाने के समय पर सटीक नियंत्रण होता है, जिसके परिणामस्वरूप तेजी से और अधिक सुसंगत सीजनिंग होता है।

2.2 वैक्यूम सीजनिंगः वैक्यूम सुखाने में लकड़ी को एक सील कक्ष में रखना, वायुमंडलीय दबाव को कम करना और वाष्पीकरण प्रक्रिया को तेज करना शामिल है। यह विधि लकड़ी के प्राकृतिक रंग और गुणवत्ता को संरक्षित करते हुए तेजी से सुखाती है।

2.3 कृत्रिम और रासायनिक सीजनिंगः कृत्रिम सीजनिंग में तापमान, आर्द्रता और वायु परिसंचरण को नियंत्रित करने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग किया जाता है। रासायनिक सीजनिंग नमी निकालने और सुखाने में तेजी लाने के लिए रसायनों का उपयोग करता है, लेकिन पर्यावरणीय चिंताओं के कारण इसका उपयोग आमतौर पर कम किया जाता है।

लकड़ी सीजनिंग फर्नीचर निर्यात में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो लकड़ी के उत्पादों के संरक्षण, गुणवत्ता और स्थिरता को सुनिश्चित करता है। लकड़ी सीजनिंग की उचित विधियों को लागू करना, जैसे कि हवा सुखाने, किल्न सुखाने, वैक्यूम सुखाने या कृत्रिम सीजनिंग, फर्नीचर निर्यातकों की सफलता और प्रतिष्ठा को काफी प्रभावित कर सकता है। लकड़ी के सीजनिंग के लाभों और प्रकारों को समझकर, उद्योग के पेशेवर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में असाधारण फर्नीचर देने के लिए सही निर्णय ले सकते हैं।

लकड़ी सीजनिंग फर्नीचर निर्यात में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो लकड़ी के उत्पादों के संरक्षण, गुणवत्ता और स्थिरता को सुनिश्चित करता है।

लकड़ी को सीजनिंग करने से उसकी उम्र बढ़ जाती है?

सरल शब्दों में कहा जाए तो, जैसे ही लकड़ी की सीजनिंग कर के नमी निकाल दी जाती हैं, उसकी उम्र बढ़ जाती है। इस लकड़ी की क्षरण होने की संभावना कम हो जाती है और लंबे समय तक उपयोगी बना रहता है। फर्नीचर में सीजनिंग लकड़ी का प्रयोग करने से इसकी स्थिरता और उपयोगिता बढ़ जाती है। यह लंबे समय तक सुंदर और उपयोगी हालात में रहता है। सीजनिग और गैर सीजनिंग लकड़ी का उदाहरण हम दरवाजों में देख सकते हैं। बिना सीजनिंग किए लकड़ी के जो दरवाजे होते हैं, वह गर्मी के दिनों में बंद नहीं होते। फूल जाते हैं। जैसे ही सर्दी आती है, वह सिकुड़ जाते हैं। इस तरह से एक या दो मौसम के बाद दरवाजे देखने में भी खराब लगते हैं। अब यदि यह लकड़ी सही से सीजनिंग होती तो दरवाजे के सिकुड़ने और फैलने की समस्या नहीं होती। लकड़ी पर फफूंदी नहीं लगती। बोरर की समस्या भी दूर हो जाती है।

प्रत्येक लकड़ी सीजनिंग करने के बाद ही उपयोग में लायी जाए, ऐसा सिर्फ कानून बनाने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए व्यापक जागरूकता अभियान भी चलाया जाना पड़ेगा। और प्रत्येक शहर और गांव में सीजनिंग की सुविधा भी उपलब्ध होने चाहिए जहां भी आरे लगें हों।

क्या आरा संचालक सीजनिंग प्लांट लगाएंगे?

छोटे आरा संचालक सीजनिंग प्लांट का खर्च वहन नहीं कर सकते। यदि उनके लिए कानूनी तौर पर सीजनिंग प्लांट जरूरी कर भी दिया जाए तो इस व्यवस्था में भ्रष्टाचार होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। इसकी जगह सरकार या वन विभाग अपने स्तर पर प्लांट लगाए। फिर जो लकड़ी आरा मशीन से निकलेगी, उसका अनिवार्य सीजनिंग होना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। लकड़ी प्लांट में सीजनिंग करने के बाद एक प्रमाण पत्र जारी होना चाहिए। सरकार को यह भी प्रावधान करना चाहिए कि सरकारी भवनों में सिर्फ सीजनिंग लकड़ी का ही प्रयोग हो, इससे जागरूकता बढ़ेगी, न सिर्फ सरकारी महकमों में बल्कि आम जनता में भी।

फिर जो लकड़ी आरा मशीन से निकलेगी, उसका अनिवार्य सीजनिंग होना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। लकड़ी प्लांट में सीजनिंग करने के बाद एक प्रमाण पत्र जारी होना चाहिए।

सरकार को यह भी प्रावधान करना चाहिए कि सरकारी भवनों में सिर्फ सीजनिंग लकड़ी का ही प्रयोग हो,ngs. इससे जागरूकता बढ़ेगी, न सिर्फ सरकारी महकमों में बल्कि आम जनता में भी।

आम लोगों में सीजनिंग के प्रति जागरूकता कैसे बढ़े

यहां भी सरकार को ही पहल करनी होगी। लकड़ी सीजनिंग करने के लिए बड़े स्तर पर उपयुक्त कानून बनाने के अलावा जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। इसमें यह समझाया जाना चाहिए कि लकड़ी सीजनिंग और सही तरह से कीटाणुमुक्त कर के ही प्रयोग करे।

आमतौर पर एक मकान के निर्माण में 150-200 बजि लकड़ी लगती है। इन्हीं के हिसाब से सभी शहरों में प्लांट लगने चाहिए।

लेकिन यह सुविधा आम जन के आस पास उपलब्ध होनी भी तो चाहिए। या तो सरकार सीजनिंग प्लांट लगाएं या फिर इच्छुक उद्योगपत्तियों को, जिसमें सॉ मिलर भी शामिल हैं, ऋण उपलब्ध करवाएं। शुरूआत में प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा सबसीड़ी अवश्य घोषित होनी चाहिए। उम्मीद है कि सरकार के प्रोत्साहन वाले कदमों से जाग्रति आयेगी और लकड़ी पर लोगों का भरोसा बढ़ेगा। उसके साथ ही वृक्षारोपण भी बढ़ेगा।

वृक्षारोपण कैसे बढ़ेगा?

हमारे यहां नियम यह है कि कृषि वाणिकी से अलग किसी पेड़ को काटने पर 100 रुपए की पर्यावरण फीस प्रति पेड़ छैब् के रूप में जमा करानी पड़ती है। विदेशों में खासतौर पर कनाडा के वन विभाग का नियम यह है कि एक पेड़ यदि कोई काटता है तो वहां छह पौधे लगाने होते हैं। साथ ही उसकी यह भी जिम्मेदारी होती है कि वह छह पौधे जीवित रहें। जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि एक निश्चित समय के बाद एक ही जगह छह पेड़ मिलेंगे।

यह पर्यावरण संतुलन और लकड़ी की नियमित उपलब्धता के लिए बेहद जरूरी कदम है। अगर यहां भी कनाडा की तरह ही पौधे लगाने और उसे पेड़ बनने तक देखभाल करने की जिम्मेदारी पेड़ काटने वाले को दी जाए तो पर्यावरण को बहुत फायदा होगा। हमें इसी तरह की जागरूकता की जरूरत है।

क्या शोध संस्थानों की भी कोई भूमिका है?

विदेशो में विशेष रूप से कनाडा में जो शोध संस्थान है, वह रेवेन्यू के लिहाज से न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि सरकार को भी वापस कुछ राजस्व कमा कर देते हैं। उनके यहां उर्जा बचत से संबंधित शोध किए हुए विभिन्न तकनीक को निजी संस्थान जब इस्तेमाल करती है तो उन्हें शोध कंपनियों को रायल्टी भुगतान करने के बाद भी लाभ होता है। हमारे शोध संस्थानों को भी उद्योगों की जरूरत के हिसाब अपने शोध करने चाहिए।

भारत के उद्यमी बहुत बुद्धिमान और मेहनती है। लेकिन हम अपने व्यवसायिक जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा अकेले और अलग-अलग सीखते हुए ही गंवा देते है। किसी न किसी वजह से शोध संस्थानों के साथ उद्यमियों का तालमेल बहुत कम है।

क्या सरकारी सीजनिंग प्लांट का लाभ सभी को मिल पाता है?

सहारनपुर में कई सरकारी सीजनिंग प्लांट है, क्योंकि यहां फर्नीचर का बड़ा केंद्र है। लेकिन दिक्कत यह है कि यह सीजनिंग प्लांट बड़े-बड़े हैं। शायद यह प्लांट निर्यातकों को ध्यान में रख कर तैयार किये गये थे। इसलिए छोटे कारीगर या आरा मशीन संचालक को इस सुविधा का लाभ अपेक्षाकृत बहुत कम मिल पाता है। उनके पास लकड़ी की मात्रा कम होती है, इसलिए इंतजार करना पड़ता है।

आमतौर पर एक मकान के निर्माण में 150-200 बजि लकड़ी लगती है। इन्हीं के हिसाब से सभी शहरों में प्लांट लगने चाहिए। तभी छोटे बड़े सभी कारीगर या जनता इसका व्यापक लाभ ले पाएंगे। सीजनिंग प्लांट के प्रचार और प्रसार के लिए आवश्यक है कि प्रक्रिया आसान और सुलभ हो।