बाहरी और आंतरिक चुनौतियों के बावजूद वृद्धि को बनाए रखने की भारतीय अर्थव्यवस्था की क्षमता क्या संदेश देती है? वस्तुओं और सेवाओं की वैश्विक मांग के अलावा, भारतीय अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर पांच प्रमुख चुनौतियों से प्रभावित होती है, मसलन कम या अनियमित वर्षा, तेल की कीमतों में तेजी, राजनीतिक या नीतिगत अनिश्चितता, अर्थव्यवस्था में अस्थिरता, जिसमें वित्तीय क्षेत्र में पैदा होने वाली कोई चुनौती शामिल है। इसके अलावा इनमें वैश्विक जोखिम से बचने के परिणामस्वरूप पूंजी प्रवाह की अचानक निकासी और विदेशी मुद्रा की लागत में वृद्धि भी शामिल है।

हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था इन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए अपेक्षाकृत अधिक सक्षम है। सबसे पहले, कृषि क्षेत्र में वर्षा के नियमित या अनियमित होने का असर इसलिए कम होता है, क्योंकि फसलों में विविधता होती है। सिंचाई के उपयुक्त साधन है। मौसम की सटीक जानकारी देने वाला बेहतर सिस्टम है। जिसकी भविष्यवाणी से समय रहते इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए पुख्ता कदम उठाए जा सकते हैं।

दूसरी बात यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर तेल की कीमतों में तेजी का उतना असर नहीं होता है। सकल घरेलु उत्पाद या जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद की प्रति इकाई तेल की खपत) में तेल का प्रभाव लगातार घट रहा है। यह रूझान बने रहने की संभावना है, क्योंकि देश अक्षय ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है। इससे डीजल और पेट्रोल की मांग कम हो रही है।

तीसरी बात यह है कि भारत का लोकतंत्र अब परिपक्व हो रहा है। अब मतदाता निर्णायक जनादेश दे रहे हैं। इस वजह से अब त्रिशंकु लोकसभा, त्रिशंकु विधानसभाओं या जटिल गठबंधनों के दिन लद गए हैं। इससे देश में राजनीतिक और नीतिगत स्थिरता की अवधारणा मजबूत हो रही है। इससे दीर्घकालिक निवेशकों के लिए अधिक अनुकूल माहौल बनेगा।

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चौथा, विकास के लिए वृहद अर्थव्यवस्था में स्थिरता और एक सुरक्षित तथा कुशल वित्तीय क्षेत्र मायने रखता है। भारत ने दोनों मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन किया है। बैंकिंग क्षेत्र एक दशक से संकटग्रस्त बैलेंस शीट की छाया से पुरी तरह से उबर गया है। बैंकिंग नियामक, आरबीआई और सरकार की निगरानी के बीच इस क्षेत्र ने दो अंको की ऋण वृद्धि हासिल कर आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दिया है। वित्तीय क्षेत्र के गैर-बैंकिंग क्षेत्रगत वर्ष के संकट के छोटे दौर के बाद स्थिर हो गए हैं।

अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण तत्च उपभोक्ता की आर्थिक स्थिती है। भारत का उपभोक्ता लगातार समृद्ध और संपन्न हो रहा है। उपभोक्ता खर्च और निजी खपत को प्राथमिकता देते रहे, इसमें वह कटौती न करें,इसके लिए जोखिम प्रबंधन के ठोस समाधान के तरीके तैयार करना जरूरी है। फिर भी यह मानना सही नहीं है कि मजबूत होती अर्थव्यवस्था के लिए कोई चुनौती नहीं है।

कोई भी बड़ी घटना अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। वह चाहे एक एक करके आए या फिर एक साथ। फिर भी हम यह कह सकते हैं कि इस वक्त हमारी अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत तो है कि छोटे स्तर के झटके पहले की तुलना में अब आसानी से बर्दाश्त कर सकती है।


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