जब कोई स्टार्टअप तरक्की कर रहा होता था, तो हमारा ध्यान उसकी ओर जाता था। या यदि कोई स्टार्टअप की कीमत नीचे जा रही होती तो हम उसकी ओर ध्यान देते।

पूंजी के प्रवाह के साथ ही स्टार्टअप में उतार चढ़ाव होता रहता है। जैसे ही किसी स्टार्टअप में फंड तेजी से आ रहे होते हैं तो उसकी परिसंपत्ति की कीमतें बढ़ गईं, जिनमें स्टार्टअप्स की कीमतें भी शामिल थी।

लेकिन जैसे ही रेवेन्यू आना कम हुआ तो वक्त एक दम से बदल जाता है। इससे स्टार्टअप भी तेजी से नीचे चला जाता है। समझ यह आता है कि, मैक्रो हेडविंड और टेलविंड स्टार्टअप का भाग्य तय करते हैं।

किसी उद्यम की सफलता और विफलता के कई कारण समझ सकते हैं। इसमें से कुछ कारण तो उनके नियंत्रण में, जबकि कुछ कारण उनके नियंत्रण से बाहर के होते हैं।

इन परिस्थितियों में एक बात तो साफ है कि उद्यम को पूरी तरह से प्रशासनिक नीतियों पर भी ध्यान देना होगा। क्योंकि सिस्टम और व्यवस्थाओं की अनदेखी उद्यम के कमजोर होने की सबसे बड़ी वजह बन जाती है।

दअसल होता यह है कि कोई भी उद्यम सबसे पहले इस तरह के उत्पादों की पहचान और उत्पादन पर ध्यान देते हैं, जिससे उनकी बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़े। लेकिन प्रशासनिक व्यवस्थाओं व नीतियों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। बल्कि कई तो इसे व्यापार करने में बाधा भी मानते हैं।

लेकिन जब कोई उद्यम सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) के करीब, या किसी खास मुकाम तक पहुंच जाता है, तब नीतियों और कायदों पर ध्यान दिया जाता है। ऐसा करते हुए वह भूल जाते हैं कि सुशासन का अर्थ है एक ऐसा व्यावसायिक आधार तैयार करना, जो निवेशकों को निवेश करने में भरोसा दें, बिक्रेता आश्वस्त होकर लेन देन करें, और प्रतिभाओं को उद्यम से जुड़ने और बने रहने के लिए प्रोत्साहित करें।

इसलिए किसी भी स्टार्टअप के आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि वह जितना बाजार का ध्यान रख रहा है, लगभग उतना ही ध्यान वह सिस्टम और नीतियों का रखे। इसका मतलब है एक बोर्ड, एक टीम और एक वित्तीय रिपोर्टिंग टीम नियुक्त करना।

आज, भारत के पास दुनिया के सबसे बड़े और जीवंत उद्यम इकोसिस्टम हैं जो देश की उद्यमशीलता की भावना और नवाचार और विकास को बढ़ावा देने की क्षमता का प्रमाण है।

हमारे नेतृत्व की स्थिति को बनाए रखने का सबसे अच्छा तरीका उद्यम के लिए सर्वोत्तम प्रशासन प्रथाओं को अपनाना और निवेशकों और हितधारकों का विश्वास बनाना है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह व्यवसाय के वाणिज्यिक हित साधने जितना ही कठिन है, लेकिन दीर्घकालिक मूल्य बनाने का इससे बेहतर कोई तरीका नहीं है।