आंदोलनरत किसानों की दो मांग औचित्य विहीन है। एक तो यह है कि भारत को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से बाहर निकलना चाहिए। दूसरी कि कुछ देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर रोक लगानी चाहिए। यह स्पष्ट नहीं है कि इन मांगों को उठाने के लिए आखिर किसानों को सलाह दी किसने? क्योंकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि वर्त्तमान या पिछली सरकारों ने किसानों के हित की ॅज्व् में अनदेखी की है।

कृषि पर डब्ल्यूटीओ समझौता (एओए) उन कई समझौतों में से एक था जिन पर उरुग्वे दौर के दौरान बातचीत हुई थी। इसमें विकल्प था कि सभी समझौते माने जाए या न माने जाए। जब 1995 में डब्ल्यूटीओ की स्थापना हुई थी तब तत्कालीन सरकार ने सभी समझौतों को स्वीकार कर लिया था।

डब्ल्यूटीओ समझौतों के तहत भारत आयात होने वाले सामान पर कुछ हद तक प्रतिबंध लगा सकता है। भारत की एकमात्र प्रतिबद्धता प्राथमिक कृषि उत्पादों के आयात पर 100 प्रतिशत से अधिक, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर 150 प्रतिशत से अधिक और खाद्य तेलों पर 300 प्रतिशत से अधिक सीमा शुल्क नहीं बढ़ाने की थी। निःसंदेह, कुछ कृषि उत्पादों जैसे स्किम्ड मिल्क पाउडर, मक्का, चावल, गेहूं, बाजरा आदि के लिए सीमा शुल्क शून्य या कम था, दिसंबर 1999 में बातचीत के बाद इसकी दरों में काफी वृद्धि की गई।

1986-88 के दौरान, भारत में 22 कृषि उत्पादों के लिए बाजार मूल्य समर्थन कार्यक्रम थे, लेकिन चूंकि समर्थन का समग्र माप (एएमएस) नकारात्मक था, इसलिए भारत ने कृषि उत्पादों के लिए घरेलू समर्थन मूल्य को कम करने पर कोई सहमति नहीं जताई थी। डब्ल्यूटीओ के अलग अलग और विशेष प्रावधानों के तहत कृषि उत्पादों पर निर्यात सब्सिडी को बढ़ाया जा सकता है।

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डब्ल्यूटीओ में विभिन्न सरकारों ने इस बात पर जोर दिया कि गरीब देशों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। यह भी तर्क दिया गया कि गरीब देशों को लाखों लोगों की आजीविका का भी ध्यान होगा। खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना विकासशील और कम विकसित देशों की किसी भी नीति का एक अभिन्न अंग है। क्रमिक सरकारों ने भी विकसित देशों पर कृषि सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी उपायों जैसे गैर-टैरिफ बाधाओं को हटाने के लिए दबाव बढ़ाया है।

जो गरीब देशों में किसानों की कृषि उपज की पहुंच को कम करते हैं। हाल के वर्षों में, चीनी जैसे कुछ क्षेत्रों में किसानों की सहायता के कुछ कार्यक्रम डब्ल्यूटीओ में विवाद निपटान फॉर्म में सामने आए हैं। तब वहां की सरकार यह समझाने में सफल रही कि उन्होंने यह कदम क्यों उठाए। क्षेत्रीय या द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के मामले में भी, क्रमिक सरकारों ने किसानों के हितों की अनदेखी नहीं की है।

सरकार को अब डब्ल्यूटीओ और विभिन्न व्यापार समझौतों के तहत किसानों के हितों को सुरक्षित करने के लिए क्रमिक सरकारों द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों के बारे में बड़े पैमाने पर लोगों के बीच जागरूकता फैलानी चाहिए।


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